ancient-history-part-3

हेलो दोस्तों, आप सभी लोगों का Towards UPSC CSE में स्वागत है। दोस्तों हम प्राचीन इतिहास की शुरुआत करने जा रहे है। और हम प्राचीन इतिहास का पूरा अध्ययन करेंगे। प्राचीन इतिहास से UPSC CSE द्वारा प्रत्येक वर्ष Prelims GS PAPER I में कम से कम 7 से 8 प्रश्नों को पूछता है। इस पोस्ट में हम प्राचीन इतिहास को आरंभ करने जा रहे हैं। इस पोस्ट में हम प्राचीन इतिहास के महत्वपूर्ण विषयों पर अध्ययन करेंगे। जो हमारे प्रश्न पत्र में पूछे जाते हैं।

दोस्तों यूपीएससी सीएससी का पाठ्यक्रम बहुत बड़ा है। लेकिन ठीक रणनीतियों से यूपीएससी की तैयारी की जाए। तो यह आपको कम समय में आपके लक्ष्य पर पहुंचा सकती है। यदि आप UPSC CSE की तैयारी कर रहे हैं। तो यह आपके लिए एक बेहतर Towards UPSC CSE Platform है।

जो आपको कम समय में आपके लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए सहायक है। हम प्राचीन इतिहास का विस्तृत अध्ययन करेंगे। जिसमें की प्राचीन इतिहास है। और हम UPSC CSE Prelims GS PAPER I को लक्ष्य में रखकर अध्ययन करेंगे। इसमें आपको विगत वर्षों के प्राचीन इतिहास से प्रश्न पूछे जाने वाले प्रत्येक भाग से संबंधित प्रश्न भी दिए जाएंगे। जिससे कि यह प्रत्येक अध्याय को पूरा कर सकेंगे। इस पोस्ट में हम प्रागैतिहासिक काल से लेकर वैदिक काल तक के अध्याय से शुरुआत करते हैं। और हम एक-एक सभी अध्यायों को अध्ययन करेंगे।

Ancient History Part 1

इतिहास की परिभाषा (Definition of History in Hindi)

"इतिहास" शब्द संस्कृत के "इति + हास" से बना है, जिसका अर्थ है "ऐसा वास्तव में हुआ"। इतिहास हिस्ट्री यूनानी ग्रीक शब्द हिस्टोरिया से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ अन्वेषण से प्राप्त ज्ञान है इतिहास अतीत का अध्ययन है क्योंकि यह लिखित दस्तावेजों में वर्णित है।

इतिहास वह अध्ययन है जिसमें मानव सभ्यता, समाज, संस्कृति, शासन और घटनाओं का क्रमबद्ध और प्रमाणिक विवरण मिलता है।

हेरोडोटस (Herodotus - 'इतिहास का जनक') –

"इतिहास का उद्देश्य मानव समाज में हुई महान घटनाओं को संकलित करना और आने वाली पीढ़ियों को उनसे सीखने का अवसर देना है।"

इतिहास का विभाजन

इतिहास को निम्नलिखित तीन वर्गों में विभक्त किया जाता है।

1. प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Period)

लिखित इतिहास के पहले कालखंड को प्रागैतिहासिक काल कहा गया है इस कालखंड के लोगों को लिपि या अक्षर का ज्ञान नहीं था। यह आदिम लोगों का इतिहास पत्थर व हड्डियों के औजारों तथा उनकी गुफा चित्रकारी के आधार पर लिखा गया है। पाषाणकाल को इसके अंतर्गत रखा गया है।

प्रागैतिहासिक काल वह समय है जब लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं थे , और मानव जीवन के बारे में जानकारी हमें पुरातात्त्विक साक्ष्यों से मिलती है। इसे तीन भागों में विभाजित किया जाता है:

पुरापाषाण युग (Paleolithic Age) (25 लाख ई.पू – 10,000 ई.पू.)

- यह युग शिकार और संग्रहण पर आधारित था।

- मानव गुफाओं में रहता था और पत्थरों के औजार बनाता था।

- प्रमुख स्थल: भीमबेटका (मध्य प्रदेश), बेलन घाटी (उत्तर प्रदेश), आदमगढ़ (मध्य प्रदेश)।

- आग की खोज इसी काल में हुई।

मध्यपाषाण युग (Mesolithic Age) (10,000 ई.पू – 8,000 ई.पू.)

- इस युग में छोटे पत्थर के औजार (Microliths) का विकास हुआ।

- पालतू जानवरों को पालने की शुरुआत हुई ।

- शिकार और खाद्य संग्रह जारी रहा।

(C) नवपाषाण युग (Neolithic Age) (8,000 ई.पू – 1,500 ई.पू.)

- यह युग कृषि की शुरुआत का प्रतीक है।

- गाँवों का निर्माण हुआ , और लोग स्थायी जीवन जीने लगे।

- कृषि के लिए हल और कुएँ का उपयोग हुआ।

- प्रमुख स्थल: मेहरगढ़ (पाकिस्तान), बुर्जहोम (कश्मीर), चिरांद (बिहार)।

2. आद्य-ऐतिहासिक काल

उस काल खंड का इतिहास जो ऐतिहासिक काल से पहले का है, जब लिपि व अक्षर का उन्हें ज्ञान था लेकिन आज भी उसे पढ़ा नहीं जा सका है, आद्य ऐतिहासिक काल के अंतर्गत आता है। इतिहास लेखन की दृष्टि से सिंधु घाटी की सभ्यता व वैदिक काल को इसी कालखंड के अंतर्गत रखा गया है। क्योंकि ये लिपि चित्रात्मक व प्रतीकात्मक है जिसका अर्थ निकालना कठिन है।

3. ऐतिहासिक काल

इतिहास का वह काल जिससे संबंधित लिखित सामग्री प्राप्त होती है एवं उसे पढ़ा जा सका है भारत में यह काल छठवीं शताब्दी ई.पू. से प्रारंभ होता है। महाजनपद काल से अब तक का कालखंड शामिल है।

2. सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) (2600 ई.पू – 1900 ई.पू.)

हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता को इस नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि इसके प्रथम अवशेष हड़प्पा नामक स्थल से प्राप्त हुए थे तथा इसके आरंभिक स्थलों में से अधिकांश सिंधु नदी के किनारे अवस्थित हैं।

गार्डेन चाइल्ड ने सिंधु सभ्यता को भारतीय उपमहाद्वीप में प्रथम नगरीय क्रांति कहां है। सर्वप्रथम चार्ल्स मैसन ने 1826 ईस्वी में हड़प्पा नामक स्थल पर एक प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिलने के प्रमाण की पुष्टि किए थे। भारत में प्रागैतिहासिक स्थलों को खोजने का कार्य भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग करता है।

भारतीय पुरातत्व विभाग के जन्मदाता अलेक्जेंडर कनिंघम को माना जाता है भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना का श्रेय वायसराय लॉर्ड कर्जन को प्राप्त है 1921 में भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक जान मार्शल थे तब राय बहादुर दयाराम साहनी ने 1921 ई. में हड़प्पा की तथा राखालदास बनर्जी ने 1922 ईस्वी में मोहनजोदड़ो की खुदाई करवाए थे।

हड़प्पा सभ्यता: इस सभ्यता का सबसे उपयुक्त नाम हड़प्पा सभ्यता है क्योंकि सबसे पहले हड़प्पा स्थल को ही खोजा गया था।

सिंधु सभ्यता: हड़प्पा सभ्यता के प्रारंभिक स्थल सिंधु नदी के आसपास अधिक केंद्रित थे अतः इसे सिंधु सभ्यता कहा गया परंतु बाद में अन्य क्षेत्रों से भी स्थलों की खोज होने से अब इसका सर्वाधिक उपयुक्त नाम यह नहीं रह गया।

सिंधु सरस्वती सभ्यता: हड़प्पा का मुख्य क्षेत्र सिंधु घाटी नहीं बल्कि सरस्वती तथा उसकी सहायक नदियों का क्षेत्र था जो सिंधु व गंगा के बीच स्थित था इसलिए कुछ विद्वानों ने सिंधु सरस्वती सभ्यता भी कहते हैं।

कांस्य युगीन सभ्यता: सिंधु वासियों ने प्रथम बार तांबे और टीन मिलकर कांसा तैयार किये अत: इसे कांस्य युगीन सभ्यता कहा जाता है।

  • इसे सिंधु-सरस्वती सभ्यता भी कहा जाता है।
  • यह एक शहरी सभ्यता थी जिसमें योजनाबद्ध नगर निर्माण हुआ।
  • - प्रमुख शहर:
  • हड़प्पा (पाकिस्तान) : अनाज भंडार, किला।
  • मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान) : महान स्नानागार, नाली प्रणाली।
  • लोथल (गुजरात) : डॉकयार्ड और व्यापार केंद्र।
  • कालीबंगा (राजस्थान) : हल के निशान।
  • लिपि : चित्रलिपि (अभी तक पढ़ी नहीं गई)।
  • धर्म : मातृदेवी की पूजा, पशुपति नाथ की मूर्ति।
  • अर्थव्यवस्था : कृषि (गेहूँ, जौ), व्यापार (मेसोपोटामिया से संबंध)।

प्रमुख महानिदेशक

  • सर अलेक्जेंडर कनिंघम 1871 से 1885
  • जेम्स बर्गस 1886 से 1889
  • जॉन मार्शल 1902 से 1928
  • हेराल्ड हर्ग्रीव्स 1928 से 1931
  • राय बहादुर दयाराम साहनी 1931 से 1935
  • जे.एफ. ब्लॅकिस्टन 1935 से1937
  • राय बहादुर के. एन. दीक्षित 1937 से 1944
  • सर मॉर्टिमर व्हीलर 1944 से 1948
  • एन.पी. चक्रवर्ती 1948 से 1950
  • माधव स्वरूप वत्स 1950 से 1953
  • ए. घोष 1953 से 1968
  • बी.बी. लाल 1968 से 1972
  • देशपांडे 1972 से 1978
  • बी.के. थामर 1978 से 1985

वैदिक काल

सिंधु संस्कृति के पतन के पश्चात भारत में जिस नवीन सभ्यता का विकास हुआ उसे वैदिक अथवा आर्य सभ्यता के नाम से जाना जाता है।

भारत में आर्यों की पहचान नार्डिक प्रजाति से की जाती है आर्यों को लिपि का ज्ञान नहीं था। अतः वे अपने ज्ञान को सुनकर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने थे। इसलिए वैदिक साहित्य को श्रुति साहित्य कहा जाता है। इसका एक नाम संहिता भी है।

जर्मन विद्वान मैक्स मूलर ने आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य एशिया में बैक्टीरिया अथवा आल्प्स पर्वत के पूर्वी क्षेत्र में यूरेशिया को माना है भारतीय ग्रंथ ऋग्वेद एवं ईरानी ग्रंथ से जिंद अवेस्ता में कई भाषायी समानता पाई जाती है।

वैदिक काल (1500 ई.पू – 600 ई.पू.)

वैदिक काल को दो भागों में विभाजित किया जाता है:

1. ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ई.पू.)

2. उत्तरवैदिक काल (1000-600 ई.पू.)

(A) ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ई.पू.)
  • - इस काल में आर्यों का आगमन हुआ।
  • - मुख्य ग्रंथ ऋग्वेद की रचना इसी काल में हुई।
  • जीवनशैली : लोग गाय-पालन, कृषि और युद्ध में संलग्न थे।
  • समाज : गृहस्थ व्यवस्था, जाति प्रथा प्रारंभिक अवस्था में।
  • धर्म : इंद्र (युद्ध देवता), अग्नि, वरुण की पूजा।
(B) उत्तरवैदिक काल (1000-600 ई.पू.)
  • इस काल में जनपदों और महाजनपदों का विकास हुआ।
  • कृषि उन्नति के कारण नदियों के किनारे स्थायी बसावट बढ़ी।
  • महत्वपूर्ण ग्रंथ : यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण ग्रंथ, उपनिषद।
  • धर्म : कर्म सिद्धांत, पुनर्जन्म, यज्ञों का महत्व बढ़ा।
  • राजनीति : राजतंत्र का विकास हुआ, राजा को देवत्व प्राप्त हुआ।

You Might Also Like