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हेलो दोस्तों, आप सभी लोगों का Towards UPSC CSE में स्वागत है। दोस्तों हम प्राचीन इतिहास का अध्ययन कर रहे है। और हम प्राचीन इतिहास का पूरा अध्ययन करेंगे। प्राचीन इतिहास से UPSC CSE द्वारा प्रत्येक वर्ष Prelims GS PAPER I में कम से कम 7 से 8 प्रश्नों को पूछता है। इस पोस्ट में हम प्राचीन इतिहास का प्राचीन इतिहास (भाग 2) आरंभ करने जा रहे हैं। इस पोस्ट में हम प्राचीन इतिहास के महत्वपूर्ण विषयों पर अध्ययन करेंगे। जो हमारे प्रश्न पत्र में पूछे जाते हैं।

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Ancient History Part 2

प्राचीन इतिहास (भाग 2) महाजनपद काल, बौद्ध और जैन धर्म, मौर्य साम्राज्य, और उत्तर भारत के अन्य राजवंशों

महाजनपद काल का परिचय

वैदिक काल के अंत में, छोटे-छोटे राज्यों का विकास हुआ, जिन्हें 'जनपद' कहा जाता था। धीरे-धीरे इन जनपदों का विस्तार हुआ और वे अधिक शक्तिशाली बन गए। इस प्रकार महाजनपद अस्तित्व में आए। महाजनपद काल लगभग 600 ई.पू. से 322 ई.पू. तक चला, जो भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों का समय था। इस समय 16 प्रमुख महाजनपद उभरे, जो सत्ता और क्षेत्रीय विस्तार के लिए आपस में संघर्षरत थे।

वैदिक काल के अंत में छोटे-छोटे राज्यों का विकास हुआ , जिन्हें जनपद कहा गया। बाद में 16 प्रमुख महाजनपद उभरे।

महाजनपदों का उदय

महाजनपदों का उदय वैदिक काल के अंतिम चरण में हुआ। समाज में वर्गभेद स्पष्ट रूप से दिखने लगा था, और विभिन्न जनजातीय समूह स्थायी रूप से एक स्थान पर बसने लगे थे। इससे संगठित राज्यों की नींव पड़ी। धीरे-धीरे ये छोटे-छोटे राज्य बड़े क्षेत्रों में तब्दील हो गए और अधिक संगठित शासन प्रणाली विकसित हुई।

महाजनपदों की विशेषताएँ

  • राजनीतिक संगठन: अधिकांश महाजनपदों में राजतंत्र प्रचलित था, लेकिन वज्जि और मल्ल महाजनपद गणतांत्रिक शासन प्रणाली अपनाए हुए थे।
  • सैन्य शक्ति: महाजनपदों के बीच युद्ध होते रहते थे। इनमें मगध सबसे शक्तिशाली बनकर उभरा।
  • आर्थिक व्यवस्था: कृषि, व्यापार और शिल्प उद्योग विकसित हुआ। सिक्का प्रणाली का प्रयोग प्रारंभ हुआ।
  • सामाजिक संगठन: समाज चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) में विभाजित था। जाति प्रथा मजबूत होने लगी थी।
  • धार्मिक विकास: इस काल में जैन धर्म और बौद्ध धर्म का उदय हुआ, जिसने समाज पर गहरा प्रभाव डाला।

महाजनपदों का संघर्ष और विस्तार

महाजनपदों के बीच आपसी संघर्ष बहुत आम था। मगध, कोसल, अवंती और वत्स जैसे राज्य विस्तारवादी थे और अन्य राज्यों को अपने अधीन करने के प्रयास में लगे रहते थे। इस संघर्ष के परिणामस्वरूप अंततः मगध सबसे शक्तिशाली राज्य बनकर उभरा।

मगध का उत्थान और नंद वंश की भूमिका

मगध ने अपनी सैन्य शक्ति और रणनीति के माध्यम से अन्य महाजनपदों को हराकर भारतीय उपमहाद्वीप में अपना प्रभुत्व स्थापित किया।

बिम्बिसार (हर्यक वंश): मगध का पहला शक्तिशाली शासक जिसने अपने राज्य का विस्तार किया।

अजातशत्रु: उसने वैशाली और कोसल पर विजय प्राप्त की।

महापद्म नंद (नंद वंश): नंद वंश का संस्थापक जिसने कई महाजनपदों को खत्म कर दिया और एक विशाल साम्राज्य की नींव रखी।

महाजनपद काल का महत्व

प्रशासनिक संगठन: इस काल में प्रशासन अधिक व्यवस्थित हुआ, जिससे आगे चलकर मौर्य साम्राज्य का उदय संभव हुआ।

धार्मिक परिवर्तन: बौद्ध और जैन धर्म का उदय हुआ, जिसने भारतीय समाज और संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया।

आर्थिक विकास: व्यापार और शहरीकरण में वृद्धि हुई, जिससे समृद्धि बढ़ी।

सामाजिक संरचना: वर्ण व्यवस्था अधिक कठोर हो गई, जिससे समाज में असमानता बढ़ी।

बौद्ध धर्म और जैन धर्म का उदय

धार्मिक और सामाजिक परिवर्तन

छठी शताब्दी ईसा पूर्व का समय भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधारों का काल था। इस समय भारत में समाज में कई सामाजिक विषमताएँ, जातिवाद, यज्ञ और बलिदान की प्रथाएँ, और वर्ण व्यवस्था के कठोर नियम प्रमुख थे। इसी समय समाज में असंतोष की भावना बढ़ने लगी थी। लोग कर्मकांड और वैदिक परंपराओं से असंतुष्ट होने लगे थे। इस असंतोष का परिणाम यह हुआ कि समाज में नई धार्मिक विचारधाराएँ उभरने लगीं। इसी काल में बौद्ध धर्म और जैन धर्म का उदय हुआ। ये दोनों धर्म वैदिक धर्म की जटिलता और कर्मकांड के विरुद्ध थे और सरल धर्म और आचरण पर बल देते थे।

बौद्ध धर्म का उदय

बौद्ध धर्म की स्थापना महात्मा बुद्ध द्वारा की गई। उनका जन्म 563 ई.पू. में कपिलवस्तु (वर्तमान नेपाल) के लुंबिनी में हुआ था। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ गौतम था। उन्होंने जीवन में दुख और पीड़ा के कारणों को जानने के लिए अपने राजसी जीवन को त्याग दिया और सत्य की खोज में निकल पड़े। वर्षों की साधना और ध्यान के बाद उन्होंने बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया और वे बुद्ध कहलाए।

बुद्ध ने अपने जीवनकाल में कई स्थलों पर उपदेश दिए और उनकी शिक्षाएँ सरल और व्यवहारिक थीं। उन्होंने चार आर्य सत्य, आठ मार्ग, और मध्यम मार्ग का प्रतिपादन किया। उनके उपदेशों का प्रमुख उद्देश्य मानव को जीवन की पीड़ा से मुक्ति दिलाना था।

जैन धर्म का उदय

जैन धर्म की स्थापना महावीर स्वामी द्वारा की गई। महावीर का जन्म 599 ई.पू. में कुंडलपुर (वर्तमान बिहार) में हुआ था। उनका बचपन का नाम वर्धमान था। महावीर ने 30 वर्ष की आयु में संसार का त्याग कर दिया और सत्य की खोज में निकल पड़े। बारह वर्षों की कठोर तपस्या के बाद उन्होंने कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया और वे महावीर कहलाए।

महावीर ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, और ब्रह्मचर्य के सिद्धांतों पर बल दिया। जैन धर्म के अनुयायियों को संयम और तपस्या पर जोर देने का निर्देश दिया गया था। महावीर ने भी कर्मकांड और बलिदान के खिलाफ प्रचार किया और धर्म का सरल और नैतिक आचरण पर बल दिया।

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